कोई पार नदी के गाता!
भंग निशा की नीरवता कर, इस देहाती गाने का स्वर,
ककड़ी के खेतों से उठकर,आता जमुना पर लहराता!
कोई पार नदी के गाता!
होंगे भाई-बंधु निकट ही, कभी सोचते होंगे यह भी,
इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों से सुख पाता!
कोई पार नदी के गाता!
आज न जाने क्यों होता मन, सुनकर यह एकाकी गायन,
सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे यह गाता जाता!
कोई पार नदी के गाता!
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अग्निपथ
वृक्ष हों भले खड़े, हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी, माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से, लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
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