तुलसी को हिन्दू धर्म में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण और पवित्र पौधा माना गया है। तुलसी एक महत्वपूर्ण औषधि है जो कई तरह के रोगों के निदान में प्रयोग में लाई जाती है। आयुर्वेद में तुलसी के पत्ते को सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक एंटी-बायोटिक माना जाता है। विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि तुलसी में पाया जाने वाला तैल हमारी श्वांस संबंधी समस्याओं का सबसे प्रभावी उपाय है।
परंतु तुलसी के पत्ते में अधिक मात्रा में आयरन और पारा (मर्करी) पाया जाता है। तुलसी के पत्ते को चबाने पर ये तत्व हमारे मुंह में घुल जाते हैं। ये दोनों ही तत्व हमारे दांतों के स्वास्थ्र के लिए तथा उनकी सुंदरता के लिए हानिकारक हैं। तुलसी थोड़ी अमलीय यानी कि एसिडिक नेचर की होती है, इसलिए प्रतिदिन इसका सेवन दांतों की समस्याओं को आमंत्रण दे सकता है। तुलसी की पत्तियों में न्यून मात्रा में आर्सेनिक भी होता है। इसे यदि दांत से चबाया गया तो यह हमारे मुंह में उपस्थित क्षार तत्वों से मिल जाएगा। इसके परिणामस्वरूप दांतों की सड़न और मसूड़ों की समस्या होती है। इसलिए पत्तियों को दांत से नहीं चबाना चाहिए बल्कि इसे पूरी तरह निगल लेना चाहिए।
धार्मिक मान्यताएं भी तुलसी के पत्ते को चबाने की आज्ञा नहीं देती हैं। हिंदू संस्कृति के लोग तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी के एक अवतार के रूप में पूजते हैं, इसलिए भी तुलसी के पत्ते को चबाना नहीं चाहिये।
तुलसी के प्रयोग का सर्वश्रेष्ठ ढंग होता है चाय के साथ इसका सेवन करना। तुलसी के पत्ते का उपयोग कर बनाई गई चाय प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करती है और मुंह के जर्म्स से सुरक्षा दिलाने में सहयोग करती है।
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