भादंसं की धारा 7 का निर्माण इस संहिता को शक्तिशाली एवं विश्वसनीय बनाने के उद्देश्य से किया गया है। सरल शब्दों में, धारा 7 भादंसं की एकरुपता और विश्वसनीयता की रक्षा करती है। इसका अर्थ ये है कि कोई भी व्यक्ति भादंसं को अपने मनमाने ढंग से प्रयोग या परिभाषित नही कर सकता। इस धारा को समझने से पहले देखते हैं भादंसं में दी गई परिभाषा ।
आईपीसी में लिखित धारा 7 का विवरण
एक बार स्पष्टीकृत पद का भाव –
हर पद, जिसका स्पष्टीकरण इस संहिता के किसी भाग में किया गया है, इस संहिता के हर भाग में उस स्पष्टीकरण के अनुरूप ही प्रयोग किया गया है।
इसका अर्थ यह है कि यदि कोई भी भाव या शब्द इस संहिता में कही भी एक बार स्पष्ट कर दिया गया है तो संपूर्ण संहिता में उस शब्द का वही अर्थ वही माना जाएगा। ऐसा नही है कि एक ही शब्द का अर्थ अलग अलग धाराओं में अलग अलग माना जाएगा।
एक शब्द या भाव का अर्थ एक ही माना जाएगा, अपनी मनमानी से कोई भी उस शब्द का अर्थ नही बदल सकता। एक बार किसी शब्द की परिभाषा दे दी गई या परिभाषित कर दिया गया, तो उसके बाद पूरी संहिता में उसको वही माना जाएगा।
उदाहरण :
मान लीजिए कि एक शब्द है 'अपराधी'!
इस शब्द की जो परिभाषा या अर्थ भादंसं में एक बार स्पष्ट कर दिया गया है, वही अर्थ पूरी संहिता में माना जाएगा। भादंसं ने जिन कृत्यों को अपराध की श्रेणी में माना है और उसे करने वाले को अपराधी माना है तो इन कृत्यों के अलावा अन्य कोई कृत्य अपराध की श्रेणी में नही आयेगा और करने वाले को अपराधी नही माना जाएगा।
भारतीय दण्ड संहिता की अन्य धाराएं (क्रमानुसार) :
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